जब भी महाभारत का जिक्र होता है. उसमें श्रीकृष्ण के साथ ही दानवीर कर्ण का नाम जरूर आता है। कर्ण महाभारत के उन यौद्धाओं में से एक है, जिनके दान के किस्से ज्यादातर पुराणों में लिखे गए हैं। कर्ण का जन्म एक खास कवच और कुण्डल के साथ हुआ था। कवच और कुण्डल के धारण होने तक कोई उन्हें परास्त नहीं कर सकता था। इसके साथ ही कर्ण अपने वचन और दान के लिए जाने जाते थे। वह कभी भी दान से पीछे नहीं हटते थे।
कब से मौजूद है कवच और कुंडल
पुराणों की मानें तो महाभारत युद्ध के दौरान सभी को पता था कि कर्ण को हराना बहुत ही मुश्किल है। ऐसे में अर्जुन के पिता और देवराज इन्द्र ने कर्ण से उनके कवच और कुण्डल को लेने की योजना बनाई। कर्ण जब सूर्य देव की पूजा कर रहे थे. तब इंद्रदेव उनके पास एक भिखारी बनाकर कवच और कुण्डल मांगने पहुंचते थे। इंद्र देव के इस छल के विषय में सूर्यदेव ने कर्ण को सावधान कर दिया था। इसके बाद भी कर्ण ने कहा कि वह अपने वचनों से पीछे नहीं हटेंगे। कर्ण ने इंद्र देव को कवच कुडण्ल दान दे दिए। इस पर इंद्र देव ने कर्ण से प्रसन्न होकर कहा कि अगर तुम कुछ मांगना चाहते हो मांग सकते हो, लेकिन कर्ण ने मना दिया था।
यहां पर हैं कवच और कुंडल
कथाओं के अनुसार, कर्ण के कवच और कुण्डल की वजह से देवराज इंद्र को स्वर्ग में प्रवेश नहीं मिला। इसकी वजह उनका कर्ण से झूठ बोलकर कवच और कुण्डलों का दान में लेना था। चंद्र देव ने सूर्य देव की मदद से सूर्य मंदिर के नीचे समुद्र के किनारे कर्ण के कवच और कुण्डलों को छिपाकर कर रख दिया। और आज भी कर्ण का कवच और कुण्डल छत्तीसगढ़ के बीजापुर में स्थित एक रहस्यमयी गुफा के अंदर मौजूद है। आपको बता दें कि कर्ण के कवच और कुंडल से भी सूर्य की किरणों के सामान रौशनी आया करती थी।